Friday, January 22, 2021

Class-7 Hindi Chapter-9 चिड़िया की बच्ची

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22/01/2021              CLASS-7                     SLOT-2

HINDI

Chapter-9 चिड़िया की बच्ची


श्रुतिलेख

1.       संगमरमर

2.       अभिरुचि

3.       बसंत

4.       माधवदास

5.       स्वाद

6.   चित्रकारी

7.       बगीचा

8.   प्रफुल्लित

9.       मोतियों

10.   भटककर

11.   घोसले

12.   मालामाल

13.   कोठिया

14.   उदासियों

15.   वरदान

 

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.किन बातों से ज्ञात होता है कि माधवदास का जीवन संपन्नता से भरा था और किन बातों से ज्ञात होता है कि वह सुखी नहीं था?
उत्तर-माधवदास की बड़ी कोठी, सुंदर बगीचा, रहने का ठाठ-बाट रईसों जैसा था। चिड़िया के साथ वार्तालाप में कहना कि तेरा सोने का पिंजरा बनावा दूंगा और उसे मालामाल कर देने की बात कहता है। इसके अलावा वह स्वयं स्वीकार करता है। कि उसके पास कई कोठियाँ, बगीचे और नौकर-चाकर हैं। इन बातों से उसकी संपन्नता का पता चलता है। इसके अलावे वह अकेलेपन को दूर करने के लिए चिड़िया के साथ रहने के लिए मजबूर था, यह बात दर्शाता है कि सारी सुविधाओं के बाद भी वह सुखी नहीं था।

प्रश्न 2.माधवदास क्यों बार-बार चिड़िया से कहता है कि यह बगीचा तुम्हारा ही है? क्या माधवदास निस्वार्थ मन से ऐसा कह रहा था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-माधवदास चिड़िया से बार-बार इसलिए कहता है क्योंकि उसे चिड़िया बहुत सुंदर और प्यारी लगी। वह चाहता है कि वह चिड़िया सदा के लिए बगीचे में रह जाए। यही कारण है कि बार-बार यह बात दुहराता है कि बगीचा तुम्हारा ही है।

माधवदास का ऐसा कहना पूरी तरह से निस्स्वार्थ मन से नहीं था। वह चिड़िया को महल में पिंजरे में बंद करके रखना चाहता था ताकि अपनी इच्छा से उसकी सुंदरता को निहार सके और उसका चहचहाना सुन सके।

प्रश्न 3.माधवदास के बार-बार समझाने पर भी चिड़िया सोने के पिंजरे और सुख-सुविधाओं को कोई महत्त्व नहीं दे रही थी। दूसरी तरफ़ माधवदास की नज़र में चिड़िया की जिद का कोई तुक न था। माधवदास और चिड़िया के मनोभावों के अंतर क्या-क्या थे? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-माधवदास बार-बार चिड़िया को सोने के पिंजरे व सुख-सुविधाओं का लालच देता है लेकिन चिड़िया इन बातों को कोई महत्त्व नहीं देती, उसे तो स्वच्छंदता ही पसंद है। उसे माधवदास के सुंदर बगीचे में रहना भी पसंद नहीं है। वह अपने परिवार से भी अलग नहीं होना चाहती। शाम होते ही उसे माँ के पास जाने की जल्दी होती है। वह तो केवल घूमना ही चाहती है, बंधन में रहना उसका स्वभाव नहीं।

दूसरी तरफ माधवदास की नजर में चिड़िया की ज़िद का कोई तुक न था वे तो केवल अपने बगीचे की शोभा बढ़ाने हेतु उस चिड़िया को पकड़ना चाहते थे। वे उसे सोने के पिंजरे व अन्य सामानों का प्रलोभन भी देते हैं लेकिन चिड़िया के लिए सब चीजें कोई महत्त्व नहीं रखतीं।

प्रश्न 4.कहानी के अंत में नन्ही चिड़िया का सेठ के नौकर के पंजे से भाग निकलने की बात पढ़कर तुम्हें कैसा लेगा? चालीस-पचास या इससे कुछ अधिक शब्दों में अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।
उत्तर-कहानी के अंत में नन्ही चिडिया का सेठ के नौकर के पंजे से भाग निकलने की बात पढ़कर मुझे आपार खुशी हुई, क्योंकि माधवदास उसे अत्यधिक प्रलोभन देते हैं कि चिड़िया उसके पास रह जाए पर चिड़िया नहीं मानती। अंत में वह उसे अपने नौकर से पकड़वाना चाहता है लेकिन चिड़िया भाग निकली। यदि माधवदास चिड़िया को पकड़वाने में सफल हो जाता तो चिडिया का शेष जीवन कैदी के रूप में व्यतीत होती। उसकी आजादी समाप्त हो जाती उसका परिवार उससे बिछड़ जाता। उसकी स्वच्छंदता हँसी-खुशी समाप्त हो जाती। अत: मेरी संवेदना चिड़िया के प्रति बहुत अधिक है। चिड़िया उसे स्वार्थी माधवदास के चुंगल से बच निकलने में सफल हुई।

प्रश्न 5.‘माँ मेरी बाट देखती होगी’-नन्ही चिड़िया बार-बार इसी बात को कहती है। आप अपने अनुभव के आधार पर बताइए कि हमारी जिंदगी में माँ का क्या महत्त्व है?
उत्तर-हमारी जिंदगी में माँ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। माँ दुख-सुख में सदैव अपने बच्चों के साथ रहती है। माँ हमारे जीवन की सभी परेशानियों को दूर करते हुए सारे दुखों और कष्टों को स्वयं झेल जाना चाहती है। हमारा पालन-पोषण करती है, हमें सभी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध कराती है तथा दुख की घड़ी में ढाढ़स बँधाती है। माँ का स्नेह और आशीर्वाद बच्चे की सफलता में योगदान देता है। अतः हम माँ के ऋण से उऋण नहीं हो सकते। यही कारण है कि जब चिड़िया को माधवदास के घर देर होने लगती है तो रह-रहकर वह यही कहती है कि माँ इंतजार करती होगी।


कहानी से आगे

प्रश्न 1.इस कहानी में आपने देखा कि वह चिड़िया अपने घर से दूर आकर भी फिर अपने घोंसले तक वापस पहुँच जाती है। मधुमक्खियों, चींटियों, ग्रह-नक्षत्रों तथा प्रकृति की अन्य विभिन्न चीजों में हमें एक अनुशासनबद्धता देखने को मिलती है। इस तरह के स्वाभाविक अनुशासन का रूप आपको कहाँ-कहाँ देखने को मिलता है? उदाहरण देकर बताइए।

उत्तर-पशु-पक्षी-पशु-पक्षी दिन भर कहीं भी विचरण करते रहें, लेकिन शाम होते-होते वे अपने घरौंदे में लौट आते हैं।
सूर्य-सूर्य अपने निश्चित समय पर निकलता है और छिपता है। वह एक दिन के लिए भी अनुपस्थित नहीं होता है। चंद्रमा की भी यही स्थिति है।
दिन-रात का क्रम-प्रकृति में दिन-रात का एक क्रम बना हुआ है। इसमें थोड़ा भी परिवर्तन नहीं होता है।

प्रश्न 2.सोचकर लिखिए कि यदि सारी सुविधाएँ देकर एक कमरे में आपको सारे दिन बंद रहने को कहा जाए तो क्या आप स्वीकार करेंगे? आपको अधिक प्रिय क्या होगा-‘स्वाधीनता’ या ‘प्रलोभनोंवाली पराधीनता’? ऐसा क्यों कहा जाता है कि पराधीन व्यक्ति को सपने में भी सुख नहीं मिल पाता। नीचे दिए गए कारणों को पढ़े और विचार करें-
(क) क्योंकि किसी को पराधीन बनाने की इच्छा रखनेवाला व्यक्ति स्वयं दुखी होता है, वह किसी को सुखी नहीं कर सकता।
(ख) क्योंकि पराधीन व्यक्ति सुख के सपने देखना ही नहीं चाहता।
(ग) क्योंकि पराधीन व्यक्ति को सुख के सपने देखने का भी अवसर नहीं मिलता।।

उत्तर-सारी सुविधाएँ प्राप्त करके भी हम एक कमरे में रहना स्वीकार नहीं करेंगे। हमें सदा स्वाधीनता’ ही प्रिय होगी न कि ‘प्रलोभनवाली पराधीनता’ क्योंकि पराधीनता का अर्थ है ‘पर के आधीन’ अर्थात् अपनी इच्छा से नहीं दूसरे की इच्छा से कार्य करना।
विशेष – अगले भाग का कार्य विद्यार्थियों के स्वयं करने हेतु।

भाषा की बात

प्रश्न 1.पाठ में पर शब्द के तीन प्रकार के प्रयोग हुए हैं
(क) गुलाब की डाली पर एक चिड़िया आन बैठी।
(ख) कभी पर हिलाती थी।
(ग) पर बच्ची काँप-काँपकर माँ की छाती से और चिपक गई।
• तीनों ‘पर’ के प्रयोग तीन उद्देश्यों से हुए हैं। इन वाक्यों का आधार लेकर आप भी ‘पर’ का प्रयोग कर ऐसे तीन वाक्य बनाइए जिसमें अलग-अलग उद्देश्यों के लिए ‘पर’ के प्रयोग हुए हों।
उत्तर-(क) पर-के ऊपर – छत के ऊपर बंदर बैठा है।।
(ख) पर-पंख – कबूतर के बच्चे के पर निकल आए।
(ग) पर-लेकिन – मैं स्टेशन गया था पर ट्रेन निकल चुकी थी।

प्रश्न 2.पाठ में तैने, छनभर, खुश करियो-तीन वाक्यांश ऐसे हैं जो खड़ीबोली हिंदी के वर्तमान रूप में तूने, क्षणभर, खुश करना लिखे-बोले जाते हैं लेकिन हिंदी के निकट की बोलियों में कहीं-कहीं इनके प्रयोग होते हैं। इस तरह के कुछ अन्य शब्दों की खोज कीजिए।
उत्तर
मनैं         –   मैंने
ले लियो   –   ले लेना
दियो       –   देना
खानां      –    खाना

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